सच झूठ

*सच-झूठ*
सच बोलना जब से शुरू किया है,
तब से न जाने कितनों को गिला है,
सच सहना बाज़ार में बंद सा हो गया है,
सच कहने वाला 'ना'समझ सा हो गया है,

सच सुनने व सहने की आदत कम हो गई है,
हरिश्चंद्र के देश में न जाने ये लत कैसे हो गई है,
क्या नाम कहूँ क्या नाता कहूँ क्या रिश्ता कहूँ मैं,
कहते-कहते ही अब सबको झूठ निभाने की आदत हो गई।

रचना :- सक्षम हिंदुस्थानी Saksham Hindusthani 
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