व्यक्तिगत हित से बड़ा राष्ट्रीय हित
*व्यक्तिगत हित से बड़ा राष्ट्रहित*
*संदर्भ :- `डॉ गोपीनाथ शर्मा` (राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार)*
*`D.R. भण्डारकर` (20वीं सदी के प्रसिद्ध इतिहासकार)*
वर्ष 1020 का समय था। यह वह काल था जब वर्ष 1000 से 1027 तक 17 बार महमूद गजनवी ने भारत के विभिन्न हिस्सों से लूटपाट की जिसमें सोमनाथ का मंदिर भी प्रमुख स्थान था।
इस समय मेवाड़ के शासक गुहिल राजवंश के शासक व "बप्पा रावल" (कालभोज) की 7 वीं पीढ़ी के वंशज शासन कर रहे थे।
राजा चंद्रभोज का शासन था। वे ज्ञानी, प्रतापी, न्यायप्रिय, वीर योद्धा व प्रजा पालक शासक थे।
एक बार कामुकता के आवेश में एक कन्या के साथ दुर्व्यवहार कर बैठे। दरबार बुलाया गया व न्याय की मांग की गई। राजा ने स्पष्ट कहा कि कन्या और उनके पिता जो भी दंड कहेंगे राजा उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। उस समय में बलात्कारी को देश निकाला अथवा मृत्यु दंड दिया जाता था।
यह वो समय था जब भारत के विभिन्न हिस्सों में महमूद गजनवी का लूटपाट चल रहा था। कन्या के पिता ने राजा को उनकी भुल का अहसास करवाया व तत्कालीन परिस्थितियों का भान करवाया व सेना को नेतृत्व प्रदान देने हेतु राष्ट्रहित में राजा को क्षमा किया। क्योंकि वह जानते थे कि इस समय यदि राजा को सिंहासन छोड़ना पड़ा तो अन्य कोई सेना को कुशल नेतृत्व नहीं दे सकेगा।
राजा चंद्रभोज ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए उसी सभा में अपने 12 वर्षीय पुत्र राजकुमार उदयभोज को राजा नियुक्त किया व उसके वयस्क होने तक ही राज्य का कार्यभार संभालने का प्रण किया।
युद्ध की तैयारी हुई, गजनवी की टुकड़ी दो बार अलग- अलग समय आई व चंद्रभोज के नेतृत्व में सेना ने मेवाड़ की सीमा में उन्हें दोनों बार घुसने नहीं दिया।
समय बीता राजा उदयभोज की शास्त्र व शस्त्र शिक्षा पूर्णता की ओर थी। राजा उदयभोज के शासन संभालने के ठीक एक वर्ष बाद चंद्रभोज ने सन्यास लेकर राज्य छोड़ दिया।
`एक दूरदृष्टा प्रजा वह पिता जिनकी कन्या के साथ अनर्थ हुआ, वह सभा में राजा को कोई भी दंड दे सकता था, कुछ भी मांग सकता था लेकिन परिस्थितियों का विचार करते हुए उन्होंने व्यक्तिगत हित न देखकर राष्ट्रहित में निर्णय लिया व राजा को आने वाले खतरे का भान भी करवाया।`
राजा ने भी अपनी गलती स्वीकार कर स्वयं को तुरंत पदमुक्त किया व शासन को सुरक्षित कर सन्यास ग्रहण किया।
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